भारत में तुलनात्मक साहित्य का महत्व
DOI:
https://doi.org/10.7492/ww03tc42Abstract
तुलनात्मक अध्ययन से तात्पर्य है किसी कृतिकार, कृति अथवा विधा विशेष का अलग-अलग या एकांत रूप में अध्ययन के बजाय दूसरों के सापेक्ष अध्ययन | यह अध्ययन दो भाषाओं के अंतर्गत हो सकता है अथवा भारत जैसे देश में अनेक भाषाओं के साहित्य तक व्याप्त हो सकता है, या फिर देश- विदेश की सीमाओं का अतिक्रमण कर विविध देशों के साहित्य तक अपने क्षेत्र का विस्तार कर सकता है, अथवा अपनी परिधि के बाहर भी अन्य कलाओं एवं शास्त्रों के परिप्रेक्ष्य में साहित्य का आकलन कर सकता है | जहाँ तक भारत में तुलनात्मक साहित्य के महत्व का प्रश्न है तो यह कहना असंगत न होगा कि बिना तुलनात्मक हुए यहाँ की किसी भाषा के साहित्य अथवा किसी भाषिक जाति का समग्र अध्ययन नहीं किया जा सकता | इसके पीछे भारत का एक सामान्य सांस्कृतिक चरित्र है जो तमाम वैविध्य के बावजूद एक आंतरिक संगति रखता है | इसलिए डॉ. रामविलास शर्मा अखिल भारतीय परिपेक्ष्य में किसी भारतीय भाषा के साहित्य को देखने का आग्रह करते हैं