वेदान्त दर्शन में गौ-संस्कृति: कठोपनिषद एवं छान्दोग्योपनिषद के विशेष सन्दर्भ में

Authors

  • मीनाक्षि खनाल Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/96zzhw24

Abstract

मानवीय मूल्यों के सामाजिक आचार- विचार, रहन-सहन, भाषा-भूषा-भेषज का समन्वयात्मक परिचय संस्कृति कहलाती है । संस्कृति क्योंकि विचारों का भी परिचय कराती है अतः वेदान्त दर्शन भारतीय विचारों का मूर्धन्य स्वरूप है । भारतीय संस्कृति का दूसरा रूप गौ-संस्कृति है । परम ज्ञान प्राप्ति के पथ द्वारा जिस प्रकार सम्पूर्ण समाज को वेदान्त ने एक सूत्र से जोड़ा हुआ है उसी प्रकार गौ-संस्कृति ने भी पूरे भारतीय समाज को एक धागे में पिरोया हुआ है । वेदान्तिक परम्परा में दार्शनिक खोज तथा मानव प्रयास का लक्ष्य आत्म साक्षात्कार है, जिसे उपनिषद के कथन “ आत्मानम् विद्धि ” में अभिव्यक्त किया गया है । पशुमात्र होते हुये भी गाय में देवत्त्व ज्ञान करना और उसकी देवता स्वरूप भक्तिभाव से पूजा अर्चना करना वेदान्त दर्शन के विचारों का समाज में प्रतिफलन है । इस शोध पत्रिका में कठोपनिषद एवं छान्दोग्योपनिषद के सन्दर्भ में गौ-संस्कृति का दार्शनिक अध्ययन किया गया है । पत्रिका में विश्लेषणात्मक और वर्णनात्मक प्रणाली का प्रयोग किया गया है । शोधपत्र में भूमिका का उल्लेख करते हुए वेदान्त दर्शन में प्राप्त गौ-संस्कृति का विशेष सन्दर्भ सहित वर्णन कर विश्लेषण पूर्वक निष्कर्ष का उल्लेख किया गया है ।निष्कर्ष में गाय के सन्दर्भ में समाज में वेदान्त दर्शन का प्रतिफलन बताया गया है ।

Published

2012-2024

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Articles

How to Cite

वेदान्त दर्शन में गौ-संस्कृति: कठोपनिषद एवं छान्दोग्योपनिषद के विशेष सन्दर्भ में. (2024). Ajasraa ISSN 2278-3741, 13(7), 254-262. https://doi.org/10.7492/96zzhw24

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