समकालीन साहित्य और यथार्थ बोध
DOI:
https://doi.org/10.7492/ws12yt80Abstract
यथार्थ का आशय वास्तविकता से है। किसी वस्तु को उसके वास्तविक रूप में वर्णित किए जाने से है बोध का अभिप्राय ज्ञान, चेतना और बुद्धि से है हिंदी साहित्य में यथार्थवादी लेखको की बडी लम्बी कतार है। हिंदी साहित्य में आदिकाल से ही प्रथार्थवाद लेखन होता रहा है जिसने जो प्रत्यक्ष अनुभव किया उसे वैसा ही रूप देकर साहित्य में संप्रेषित करने का कार्य किया साहित्य में किये गये यथार्थ चेतना चित्रण से ही मूल्यों का बोध होता है. यथार्थ चेतना से मतलब वास्तविक सत्य के प्रति सचेत रहने से है। मनुष्य जो कुछ अपने आस-पास देखता हो अपनी इन्द्रियों से अनुभव करता हो वही यथार्थ है। दुनिया की सारी सृजित रचनाए सदा ही यथार्थ का प्रतिबिम्ब स्वरूप रही हो, साहित्यकार की प्रतिभा में संचरित और परिवर्तित होते हुए ही वह अपना निश्चित आकार प्राप्त करती है एक सच्चा यथार्थवादी साहित्यकार अपने समय के संघर्ष से दो- दो हाथ करता हुआ अतीत और भविष्य के व्यापक सत्य को अपने समकालीन यथार्थ से जोड़ने का प्रयास कर अपनी रचना को कालजयी बना देता है। आज जो लेखक यथार्थ को अपनाते हो दुनियों को उसके सकारात्मक परिवर्तन की सम्पूर्ण प्रक्रिया में देखते है।