साहित्य की रचनाओं में प्रतापनारायण मिश्र की भावनात्मक भूमिका एक अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.7492/n40bq915Abstract
किसी भी देश के आचार-विचार ही उस राष्ट्र की संस्कृति है, लेकिन आचार-विचार तो संस्कृति का बाहरी रूप है। उसका अन्तरंग रूप तो मनुष्य का शेष प्रकृति के साथ तादात्मय है जो किसी भी धर्म, जाति अथवा देश के सभ्य व्यक्तियों के विचार, वाणी एवं रहन-सहन का जो रूप होता है उस को हम संस्कृति कहते हैं हर राष्ट्र की अपनी संस्कृति होती है। जिससे उस राष्ट्र के समस्त संस्कारों का बोध होता हैं। जिनके आधार पर वह अपने समाजिक या सामूहिक आदर्शों का निर्माण करता है, यह विशिष्ट समुदाय धर्म जाति अथवा राष्ट्र की विशिष्टता प्रकट करते आदर्शों का निर्माण करता है, यह विशिष्ट समुदाय धर्म, जाति अथवा राष्ट्र की विशिष्टता प्रकट करते हैं।
Published
2012-2024
Issue
Section
Articles
How to Cite
साहित्य की रचनाओं में प्रतापनारायण मिश्र की भावनात्मक भूमिका एक अध्ययन. (2024). Ajasraa ISSN 2278-3741 UGC CARE 1, 12(2), 219-223. https://doi.org/10.7492/n40bq915