अर्वाचीन दौर में जैन दर्शन की प्रासंगिकता : एक तर्कसंगत अवलोकन
DOI:
https://doi.org/10.7492/ntj4nc65Abstract
संपूर्ण ब्रह्मांड एक नियम से चलता है। प्रत्येक धर्म के अपने-अपने तरीके और नियम है, जिसकी व्याख्या अलग-अलग धर्म में अलग-अलग तरीके से किया गया है। किंतु जैन दर्शन में प्रकृति की व्याख्या विज्ञान के रूप में किया गया है। यूं कहें आजकल लॉजिकल वार्ड में जैन धर्म हर चीज की व्याख्या लॉजिक के साथ करता है। भगवान महावीर ने जीवन जीने की अनेक उपाय बताएं हैं तथा वह जैन जीवन शैली के महत्वपूर्ण अंग है आज संसार का प्रत्येक व्यक्ति अमीर गरीब पुरुष महिला बच्चे बूढ़े जाए कोई भी हो सभी किसी न किसी रूप में परेशान रहते हैं। जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव में स्थिरता बनाये रखने की सीख जैन धर्म देता है, अपने मन को मजबूत बनाने की सीख जैन धर्म देता है, सब प्रकार की विपत्ति और विषमताओं में स्थिरता बनाये रखने की सीख जैन धर्म देता है। हिंसा, पाप, अनाचार से मुक्ति की सीख जैन धर्म देता है और अपने जीवन को व्यसन और बुराइयों से बचाने की सीख जैन धर्म देता है। जैन दर्शन के अनुसार जीव और कर्मो का यह सम्बन्ध अनादि काल से है। जब जीव इन कर्मो को अपनी आत्मा से सम्पूर्ण रूप से मुक्त कर देता हे तो वह स्वयं भगवान बन जाता है। जैन धर्म सभी जीवित प्राणियों को अनुशासित, अहिंसा के माध्यम से मुक्ति का मार्ग एवं आध्यात्मिक शुद्धता और आत्मज्ञान का मार्ग सिखाता है। जैन दर्शन में वेद की प्रामाणिकता को कर्मकाण्ड की अधिकता और जड़ता के कारण मिथ्या बताया गया।