"समकालीन हिंदी साहित्य में नारी का स्वर: संघर्ष, स्वतंत्रता और पहचान"

Authors

  • डॉ पूजा धमीजा and सारिका Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/z1mzen58

Abstract

हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में नारी जीवन का चित्रण बहुआयामी और जटिल है। इसमें नारी की बदलती भूमिकाओं, उसकी आकांक्षाओं, संघर्षों, और आंतरिक दुनिया को गहरे तरीके से प्रस्तुत किया गया है। मन्नू भंडारी, मृदुला गर्ग, कृष्णा सोबती, चित्रा मुद्गल, ममता कालिया, प्रेमचंद, उषा प्रियंवद, और अन्य लेखिकाओं ने नारी के संघर्ष, स्वतंत्रता, और पहचान की खोज को विभिन्न परिप्रेक्ष्य से उकेरा है। इन लेखकों की रचनाएँ नारी के सामाजिक, मानसिक, और भावनात्मक पहलुओं को चित्रित करती हैं, जहां नारी को केवल पारंपरिक भूमिकाओं में नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रेमचंद के साहित्य में नारी के यथार्थवादी संघर्ष, उषा प्रियंवद और कृष्णा सोबती के लेखन में नारी की मानसिक स्थिति और सामाजिक दबाव का चित्रण, ममता कालिया की रचनाओं में आत्मनिर्भरता की छटपटाहट, और चित्रा मुद्गल की काव्यात्मकता में नारी के आत्मसम्मान के लिए संघर्ष को प्रमुखता दी गई है। समकालीन हिंदी साहित्य में नारी को अब केवल शोषित पात्र के रूप में नहीं, बल्कि एक सशक्त और स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में दिखाया गया है, जो अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करती है।

Published

2012-2024

Issue

Section

Articles

How to Cite

"समकालीन हिंदी साहित्य में नारी का स्वर: संघर्ष, स्वतंत्रता और पहचान". (2025). Ajasraa ISSN 2278-3741 UGC CARE 1, 13(12), 267-278. https://doi.org/10.7492/z1mzen58

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