स्मृतिशास्त्र में योग: मनुस्मृति के विशेष सन्दर्भ में।
DOI:
https://doi.org/10.7492/zc42ya57Abstract
भारतवर्ष द्वारा विश्व मानवता को प्रदत्त ‘योग’ एक अद्भुत विज्ञान है, जो अत्यन्त प्राचीन परम्परा से विद्यमान है। यह प्राचीन भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा प्रतिपादित अनमोल ज्ञान-विज्ञान से युक्त एक विशिष्ट पद्धति है। इसका साक्षात् प्रमाण हैं- वेद। प्राचीन ऋषियों द्वारा गहन ध्यान अथवा समाधि की महादशा में ही वेद की ऋचाओं का साक्षात्कार किया गया इसीलिए वेदों को अपौरूषेय कहा जाता है। सभी धार्मिक सम्प्रदायों में योग को स्वस्थ जीवन का आधार स्वीकार कर योग और उसकी क्रियाओं को विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि उसके बिना हमारी संस्कृति अपूर्ण है। योग शब्द संस्कृत के युज् धातु से निष्पन्न है, जिसका अर्थ है - जुड़ना अर्थात् एक ऐसी विद्या से जुड़ना जिसके द्वारा मनुष्य का सर्वांगीण विकास हो तथा साथ ही ब्रह्म तत्व की प्राप्ति एवं समाधि हेतु अग्रसारित हो सके। ‘योगश्चित्त वृत्ति निरोधः’ महर्षि पतंजलि के योगसूत्र का यह भाव योग के विषय में मात्र बाहरी चित्र नहीं खींचता अपितु आन्तरिक रूप से व्याख्या करता है कि हम अपनी चित्त वृत्तियों का दमन कैसे करें।