आचार्य अभिनवगुप्त के संदर्भ में रस सिद्धान्त

Authors

  • ममता रानी  and रवि प्रभात Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/txj8s306

Abstract

सुख-दुखात्मक किसी भी प्रकार के दृश्य को देखते, काव्य या साहित्य के पठन-श्रवण से द्रवीभूत होकर पाठक एवं श्रोता के मन में जो एक विशेष प्रकार की अदृश्य, अमूर्त, अनिर्वचनीय अनुभति स्वतः प्रकाशित होती है, उसी का नाम रस है। उसकी अनुभूति के क्षणों में जब व्यक्ति की मनोदशा और चेहरे के हाव-भाव में एक प्रकार की स्वाभाविक्ता रस के स्वरूप हो प्रकट करती है।

Published

2012-2024

Issue

Section

Articles

How to Cite

आचार्य अभिनवगुप्त के संदर्भ में रस सिद्धान्त. (2025). Ajasraa ISSN 2278-3741 UGC CARE 1, 13(11), 295-300. https://doi.org/10.7492/txj8s306

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