“डिजिटल वैश्विकरण के दौर में आदिवासी साहित्य की भूमिका”

Authors

  • डॉ. कांतिलाल यादव श्री हरिप्रकाश परमार Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/tkebv853

Abstract

                        डिजिटल वैश्विकरण का युग आज हमारे समाज के हर क्षेत्र में गहरा प्रभाव डाल रहा है, और साहित्य का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है ।  आधुनिक तकनीकी साधनों की विस्तारवादी उपयोगिता के साथ-साथ, इसने साहित्य को व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर नई दिशाएँ और दर्शन का भी संचार किया है । आदिवासी साहित्य की भूमिका इस सन्दर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है ।  अपने मौलिक संस्कृति, परंपराएं और विचारधारा को साझा करने के लिए, डिजिटल वैश्विकरण ने आदिवासी साहित्य को विशेष रूप से उजागर किया है । आज इंटरनेट, सोशल मीडिया, और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स के माध्यम से आदिवासी लेखकों , कवियों और साहित्यकारों का काम अब विश्व के प्रत्येक क्षेत्र में पहुँच रहा हैं । डिजिटल वैश्विकरण ने आदिवासी साहित्य को नए पाठकों और उपन्यासकारों के साथ जोड़ा है । यह वैश्विक समुदाय के साथ उनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को साझा करने का एक माध्यम भी बन गया है । इसके अलावा, डिजिटल साहित्य प्लेटफ़ॉर्म्स ने आदिवासी समुदाय के सदस्यों को अपनी कहानियों, गीतों, और कविताओं को साझा करने का एक सामाजिक मंच भी प्रदान किया है । इस प्रकार, डिजिटल वैश्विकरण ने आदिवासी साहित्य को न केवल सांस्कृतिक और साहित्यिक स्तर पर मजबूत किया है, बल्कि उसे एक नया समृद्ध और अनुभवशील साहित्यिक समुदाय के रूप में भी परिभाषित किया है ।  डिजिटल माध्यमों के द्वारा आदिवासी साहित्य आज अपनी अनूठी धारा को विश्व के साथ साझा कर रहा है, जिससे वह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।

Published

2012-2024

Issue

Section

Articles

How to Cite

“डिजिटल वैश्विकरण के दौर में आदिवासी साहित्य की भूमिका”. (2025). Ajasraa ISSN 2278-3741 UGC CARE 1, 14(6), 81-86. https://doi.org/10.7492/tkebv853

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