रश्मिरथी’ में मानवतावाद
DOI:
https://doi.org/10.7492/7218hb10Abstract
साहित्य सोद्दोश्य होता है। बिना किसी उद्देश्य के साहित्य सृजन संभव नहीं है क्योंकि केवल मनोरंजन करना ही साहित्य का एकमात्र उद्देश्य नहीं है। उसमें नैतिकता, राष्ट्रप्रेम, परोपकार, सत्य, आचरण की प्रतिष्ठा, मानवतावादी दृष्टिकोण जैसे मूल्यों का होना आवश्यक है तभी साहित्य सृजन का महत्त्व होता है। आदिकाल से आधुनिक काल तक साहित्य किसी न किसी ध्येय को ध्यान में रखकर ही रचा जाता रहा है। आदिकाल में जहाँ कवियों का उद्देश्य अपने आश्रयदाताओं का प्रशस्तिगायन करने के साथ-साथ रसिकों में वीरता और पौरुष जगाना था, वहीं भक्तिकाल में ईश्वर के विविध रूपों का वर्णन और महिमा गायन हो गया था। इसी प्रकार रीतिकालीन कविता में जहाँ रूप सौन्दर्य के साथ-साथ कविता के सौन्दर्यबोधक तत्वों की स्थापना करना था वहीं आधुनिक काल की कविता का स्वयं में स्वाधीनता संग्राम के स्वर, भाषा की प्रतिष्ठा और सांप्रदायिक सौहार्द्र के साथ होता है। इसके साथ ही भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उनके बाद की कविता में मानवतावादी दृष्टिबोध भी परिलक्षित होता है। स्वातंत्र्योत्तर कविता में प्रायः सभी कवियों ने अपनी रचनाओं में मानवतावादी दृष्टि को समाहित किया है। इसी क्रम में छायावादोत्तर काल के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कवि रामधारी सिंह दिनकर का नाम प्रमुख है। दिनकर जी की प्रायः सभी रचनाओँ में नैतिक मूल्यों की स्थापना, देश और धर्म के प्रति समर्पण तथा भारतीय संस्कृति के विविध रूपों का चित्रण हुआ है। प्रस्तुत शोध आलेख में दिनकर जी के प्रसिद्ध खण्डकाव्य ‘रश्मिरथी’ को दृष्टिगत करते हुए मानवतावाद के बिन्दुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।