पंडित दीनदयाल उपाध्याय: भारतीय संस्कृति के संवाहक
DOI:
https://doi.org/10.7492/7mdrb291Abstract
भारतीय संस्कृति ने अपने प्रारंभ काल से ही सम्पूर्ण सृष्टि रचना में एकत्व के दर्शन किए हैं। जिासमें सृष्टि के प्रत्येक कण में परस्पर परावलंबन का बीज भाव निहित है। जिासे भारतीय चिंतन परंपरा में अद्वैत कहा जााता रहा है। सभ्यता के विकास क्रम में सहकार को प्रमुख साधन एवं ममत्व एवं समता मूलक सभ्य समाज की सरंचना को अपना ध्येय बिंदु मानने वाली भारतीय संस्कृति के निमित्त पंडित दीन दयाल उपाध्याय जाी ने अपने विचार प्रवाह के माध्यम से अत्यंत महती भूमिका का निर्वहन किया। दीन दयाल जाी की तत्व दृष्टि भारतीय चिंतन परिप्रेक्ष्य को समग्रता एवं स्वालंबन के मूल में देखती है। जिासमें विकास के केंद्र में मनुष्यता एवं उसकी मूल आवश्यकताएं समाहित हैं। एकात्म मानववाद के अपने दर्शन के माध्यम से दीन दयाल जाी ने मानव केंद्रित विकास व्यवस्था के प्रतिपादन तथा व्यक्ति से परे समाज एवं राष्ट्र की संकल्पना को सांस्कृतिक भारत के संसर्ग में देखा। उन्होंने राष्ट्र के ईश्वरीय स्वरूप को स्वीकार कर, राष्ट्रवाद को मानवीय आत्मा की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति कहा।