समकालीन साहित्य में ट्रांसजेंडर विमर्श
DOI:
https://doi.org/10.7492/z8etpr29Abstract
बीसवी शताब्दी के बाद हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कई विमर्शों का शुभारंभ हुआ ।दलित विमर्श, प्रवासी विमर्श, नारी विमर्श , आदिवासी विमर्श की तरह किन्नर विमर्श का भी पदार्पण हुआ । किन्नर विमर्श में किन्नरों के जीवन संघर्षों का चित्रण किया गया है। स्त्री देह के अंदर पुरुष मानसिकता लिए जीने वाले तथा पुरुष देह के अंदर स्त्री मानसिकता लिए जीने वाले लोगों को हम ‘ तृतीय लिंगी’ कहते हैं ।इनके लिए हिंदी में प्रचलित शब्द किन्नर है । किन्नरों को हिजड़ा, तृतीय लिंगी , शिखंडी, छक्का , मौगा ,खोजा बृहन्नला, मामू, उभयलिंगी जैसे नाम देकर मुख्य धारा से हटाया गया हैl आजकल किन्नरों के लिए ट्रांसजेंडर शब्द का प्रयोग किया जा रहा है ।1990 से यह ट्रांसजेंडर शब्द अंतरराष्ट्रीय शब्द बन गया है। हाशिये का जीवन जी रहे निर्दोष ट्रांसजेंडरों के जीवन की विडंबनाओ पर प्रकाश डालने के लिए कई साहित्यकार सामने आए ।उनमें से प्रमुख साहित्यकार है - डॉ महेंद्रप्रताप सिंह ,डॉ.अरविंद कुमार ,डॉ विजेंद्र प्रताप सिंह, ईशा शर्मा ,मोहित शर्मा जहन ,अलका प्रमोद ,नीरज माधव ,महेंद्र भीष्म ,चित्रा मुद्गल आदि।